Saturday, November 12, 2011

तुम्हे भूलता हूँ जितना

आज ये मैंने  जाना  तुम्हे भूल जाना मुश्किल है कितना 
तुम याद आती हो उतना, तुम्हे भूलता हूँ जितना I 
आती हो सामने जब भी दिल में एक चुभन सी होने लगती है,
बंद कर कर लूं आखें अपनी पर बंद आखों में भी तुम्हीं नज़र आती हो, 
दे दिया धोखा मेरी आखों ने भी कुछ तुम्हारी हीं तरह,
आज ये मैंने  जाना  तुम्हे भूल जाना मुश्किल है कितना 
तुम याद आती हो उतना, तुम्हे भूलता हूँ जितना I 

क्या करूँ अब कुछ समझ में नहीं आता, 
तुम्हारी याद को चाहकर भी नहीं भुला पाता.
सोचता हूँ चले जाऊं इस दुनिया से दूर कहीं दूसरी दुनिया में. 
मगर डर लगता है तेरी उन वादों से  जब कहा था तुमने 
इस दुनिया में क्या दूसरी दुनिया में भी मैं तेरा साथ निभाउंगी I

आज ये मैंने  जाना  तुम्हे भूल जाना मुश्किल है कितना 
तुम याद आती हो उतना, तुम्हे भूलता हूँ जितना I 

                                                                         राज सिंह 












Saturday, October 29, 2011

Pensando en ti


Pensando en ti 


Estoy  sentado solo pensando en ti 
La noche  estrellada y la luna brillante 
Me recuerdo mi primer día que pasamos 
bajo el cielo nublado tu me parecía como una luna 


Eatoy  sentado solo pensando en ti 
Hoy cuando tu estas mas lejos de mundo 
Sin llamar estoy buscandote mi luna  en el cielo  
Dame un voz melodiosa de dónde estas?


Estoy  sentado solo pensando en ti 
La noche  estrellada y la luna brilliante 


                                                            राज सिंह 


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Friday, October 28, 2011

♥✿~ Mi Amor ~✿♥


~Mi Amor~✿♥







Te amo más que otros aman en este  mundo.

Yo sé que "El Amor"  no es sólo una palabra ni una frase, pero es más que un épico, todavía para hacerte entender digo que mi amor es más profundo que el mar "Mariana Trench".
te amo más que otros aman en este  mundo.

Te amo más que  otros aman en este  mundo.
Yo sé que es casi imposible decirte¨por qué te amo   tanto, todavía digo que tu sonrisa cortada, voz melodiosa,tus ojos azules y el topo sobre tu labios me hace sentir tan  feliz .
te amo más que  otros aman en este  mundo.



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                                                                           : Raj Singh


Monday, October 10, 2011

जगजीत सिंह का निधन "एक सदी का अंत"

विलियम शेक्सपीयर ने कभी कहा था कि "नाम में क्या रखा है " मगर उनके  इस बात को कई बार गलत होते देखा गया / आज मैं भी उनके इस कथन को गलत मानते हुए ये कहना चाहता हूँ कि "नाम में हीं सब कुछ रखा है.   "
"जगजीत" इसका अर्थ होता है जगत को जितने वाला, मतलब जो दुनिया को जीत लेता है . यही नाम था एक ऐसे परवाने की जो लोगों के दिलों पर कई सालों से छाया रहा. चाहे वो गम में डूबा टुटा दिल आशिक हो या प्रेम में अंगड़ाई लेता जोड़ा, हर किसी के दिल पर जगजीत का खुमार छाया  रहा. इनसे अपने नाम के अनुसार दुनिया को जीत लिया. शायद आप सिर्फ जगजीत कहे जाने से सोच रहे होंगे की दुनिया में इस नाम के कई लोग हैं, फिर मैं किस जगजीत की बात कर रहा हूँ ? मैं बात कर रहा हूँ "गजल सम्राट " जगजीत सिंह की.जिन्होंने अपने गीतों को लोगों के होठों पर गुनगुनाने को मजबूर कर दिया. उनके वे गीत "होठों से छू लो तुम , मेरा गीत अमर कर दो " जब लोगों की जुबान पर चढ़े  तो यह गीत तो अमर हुआ हीं साथ हीं जगजीत सिंह को भी भविष्य में उनके देहांत के बाद अमर करने के लिए कदम बढ़ा दिए थे. 
आज सोमबार 10 अक्तूबर , सुबह में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहते हुए फिर से अपने वे गीत लोगों को अपने होठों पर गुनगुनाने के लिए छोड़ दिए. जगजीत सिंह के अलविदा कहते हीं एक सदी का अंत हो गया / आज पूरा देश शोक में डूब गया है. 
जगजीत सिंह ने तो दुनिया को अलविदा कह दिया मगर उनके  दिए तोहफे (गीत) और भारत को गजल की दुनिया में एक मुकाम हाशिल करवाना , हमेशा उनको जिन्दा रखेगी, कोई कितना भी चाह ले, उनकी नामो - हस्ती इस दुनिया से कभी मिटने वाली नहीं है / 

  "जगजीत का जाना, एक पूरी दुनिया का उठ जाना है, इक पूरे दौर का उठ जाना है"... गुलजार 






महान गायक जगजीत सिंह के अचानक यूं महफिल से उठकर चले जाने पर केवल इतना कहा जा सकता है 


"फरिश्तों अब तो सोने दो , कभी फुरसत में कर लेना हिसाब , आहिस्ता , आहिस्ता "
                                                     



  

Saturday, April 2, 2011

आखिर भूख मिट हीं गयी ....

आखिर भूख मिट हीं गयी ....
मेरा विश्वास कीजिये हमलोग आज से नहीं बल्कि पिछले 28 साल से भूखे - प्यासे थे , कोई नहीं जनता था कब हमारी भूख - प्यास मिटेगी /
आज से 28 साल पहले यानि की 1983 में पहली बार हमलोगों ने जी भरकर भोजन किया था और उसके बाद से अब तक भूखे  हीं थे , एक बार तो मौका भी मिला था 2003 में की अपनी भूख को शांत कर लें मगर क्या कहें ऑस्ट्रेलिया ने हमसे  थाली छीन  लिया  था / मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ, ऑस्ट्रेलिया ने तो हमसे खाने की थाली छीना था  मगर इस बार हमने उसका ऐसा बदला लिया की थाली तो दूर की बात , वे लोग लंगर में भी नहीं जा सके /


मैं बात कर रहा हूँ 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा रचे गए  क्रिकेट जगत के उस ऐतिहासिक घटना की जिसे फिर से ठीक उसी दिन यानि कि ठीक शनिवार को हीं 2 अप्रैल 2011 को फिर से भारतीय टीम ने दोहरा दिया /  और दोहराए भी क्यूँ न आखिर 1 अरब  25 करोड़  लोगों की दुआएं जो उनके साथ थी /
हुआ यूँ कि  30 मार्च को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए शानदार सेमी फ़ाइनल मुकाबले को जीत कर भातीय टीम फ़ाइनल में तीसरी बार पहुंची और 2 अप्रैल 2011को होने वाले फ़ाइनल मुकाबले में भारतीय टीम के सामने श्रीलंकाई टीम / ऐसे में सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी हुई थी कि क्या भारतीय टीम इस बार सचिन के लिए सच में कुछ कर पायेगी ?
और जनता कि उम्मीदों पर खरा उतरते हुए  इस बार भारतीय टीम ने पिछली बार कि तरह ना हीं सचिन को निरास किया  और ना हीं यहाँ कि जनता को  / कर लिया वर्ल्ड कप  अपने नाम /

इसी के साथ 1983 के इतिहास को फिर से एक बार 2011 में दोहरा दिया जिसका कि सभी को एक लम्बे अरसे से इंतजार था /

इसके दोहराए जाने का सबसे बड़ा कारन था वो भेंट / उपहार , जिसे हमे क्रिकेट के भगवान को देना था,  यानि की सचिन तेंदुलकर को  /


लोगों ने दुआ भी किया तो हर दुआ में यही कहा ....इस बार सचिन के लिए !!!

सचिन तेंदुलकर

Wednesday, March 30, 2011

यकीन मानिये इतिहास दोहराया भी जा सकता है ....

कौन  कहता  है  की इतिहास बार बार नहीं दोहराया  जा सकता ?
अगर आप भी ऐसा हीं  सोचते हैं तो  , मैं कहता हूँ की आपका ऐसा सोचना गलत हैं /
क्यूंकि इसे एक बार नहीं बल्कि पुरे पाँच बार दोहराया है हमारे भारतीय क्रिकेट टीम ने /
अभी तक भारत - पाकिस्तान के जितने भी मुकाबले वर्ल्ड कप में हुए हैं, सभी में केवल और केवल भारतीय टीम की हीं जीत हुयी है / वर्ल्ड कप में कोई भी ऐसा मुकाबला नहीं हुआ है जिसमे की पाकिस्तान टीम ने भारत के खिलाफ जीत हासिल की हो /

अभी तक भारत-पाकिस्तान के बीच 1992, 1996, 1999 ,2003 और 2011 को  मिलाकर  पाँच  बार वर्ल्ड कप  में आमने - सामने  की भिडंत हुयी है और सभी में भारत की ही जीत हुई है /
आज का मुकाबला सेमी फ़ाइनल  तक हीं  सिमित नहीं था बल्कि  बात थी  भारत को फिर से उसी इतिहास को दोहराने की  जिसे अभी तक भारत चार बार पाकिस्तान के खिलाफ दोहराता आ रहा था को , फिर से दोहराने की  /
और बेशक इसे फिर से दोहराया भी / और दोहराया भी तो इस अंदाज़ में की  पाकिस्तान टीम के कप्तान शहीद अफरीदी  अपनी आँखों  को  आंसू  निकलने से नहीं रोक पाएं  /
अब तो आप मानते हैं न,  की  इतिहास को दोहराया भी जा सकता है  ? 
क्रिकेट के इतिहास में तो पाकिस्तान के खिलाफ हमने पांचवीं  बार एक हीं इतिहास को तो दोहराते हुए पाकिस्तान को वर्ल्ड कप से बहार का रास्ता तो दिखा दिया, अब देखना यह है की क्या भारत  1983 के इतिहास को फिर से दोहराता है की नहीं ? सब की उम्मीदे इसी बात पर टिकी है  और लोग आशा भी कर रहे है की भारतीय टीम एक बार फिर से 1983 के इतिहास को  दोहराएगा  / बस दो दिन और  ! नतीजा हम सबके सामने होगा  / फिर तो हम और भी जोश के साथ कह सकेंगे की हाँ  इतिहास दोहराया भी जा सकता है  , बस फर्क रहता है तो सिर्फ दिन और तारीख़ का  /

2 अप्रैल  2011 को  मुंबई के बांखेडे  स्टेडियम , वर्ल्ड कप 2011 का फ़ाइनल  भारत और श्रीलंका  के बीच  /

                                             इस बार सचिन के लिए........ 






Thursday, January 27, 2011

" और कितने भारत ? "

जब भी किसी चीज़ को बाँटने की बात आती है तो मुझे और शायद आपको भी बचपन  के वे लम्हें  फिर  से  याद आ जाते हैं , जब हम छोटे हुआ करते थे और जब किसी चीज़ को बाँटने की बारी आती  थी , तो हम  भाई - बहनों  में  आपस में हीं लड़ाई शुरू हो जाया करती थी / कभी खाने की चीजों को लेकर , कभी पैसे को लेकर, तो कभी कपड़ों के लिए / कभी - कभी तो लड़ाई इस हद तक बढ़ जाता की हम कई  दिनों तक आपस में एक - दूसरे से बात करना भी मुनासिब नहीं समझते थे और कभी लड़ाई को लेकर मम्मी - पापा से मार भी खा जाते थे  /
और जब थोड़े बड़े हुए तो , इसके बाद  बारी आती  है स्कूल की,  जहाँ कभी बेंच पर बैठने को लेकर लड़ाई , तो कभी लाइन में आगे या पीछे खड़े होने के लिए लड़ाई अपने हीं कक्षा के लड़कों से लड़ाई /
 थोडा और बड़े हुए तो हमने  लोगों को घर के हिस्से और जायदाद को बँटवारे को लेकर लड़ते देखा / जहाँ लोग अपने हीं भाइयो की सरेआम क़त्ल करने से भी  नहीं कतराते , जो बचपन से लेकर पूरी उम्र एक साथ गुजारते हैं बस कुछ पैसे और  जमीन के टुकड़े के लिए सारे रिश्ते नातों को पल भर में भुला  देते है /
जहाँ तक लोगों को जमीन और पैसे के लिए लड़ाई करते देखने की बात है , वो तो मुझे समझ में आया / मगर हद तो तब हो गया  जब लोगों को अपने की राज्य और प्रदेशों के बँटवारे के लिए लड़ाई  करते देखा वो भी पहली बार /
लोगों ने बिहार को बाँट दिया वो भी एक बार नहीं दो दो बार , पहले इसे बाटकर प. बंगाल बना दिया और फिर झारखण्ड /
लोगों  ने ना केवल बिहार को ही बाटा बल्कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को भी  उनके अपने वजूद से अलग करके छत्तीसगढ़ और उतराखंड जैसे नए राज्यों को बनाया /
इसके बाद बारी आयी महाराष्ट्र को और फिर से उत्तर प्रदेश को बाटने की  ये शुक्र है की अभी तक इनके बटवारे नहीं हुए /
अगस्त 2009 में मैं हैदराबाद आया और और दिसम्बर में जब हमारे पहले  semester   की पढाई ख़त्म हुई और जब हम घर जाने ही वाले यहे ठीक उसी दिन 28 दिसम्बर 2009  को पहली बार आंध्र प्रदेश की बटवारे की बात को सुना , ये और बात है की इसके बटवारे की मांग आज से नहीं बल्कि 60 वर्ष से हो रही है  / जहाँ तक मेरा सोचना है ये किसी राज्य की बटवारे की मांग का सबसे पुराना मुद्दा है /
यहाँ के लोग आंध्र प्रदेश को बाटकर एक अन्य नए राज्य तेलंगाना को बनाये जाने की मांग कर रहे है , और आज भी इसे बाटा  नहीं गया है / और पता नहीं कितने और दिन या कितने वर्ष और लगेगा इसे बाटने में / जो भी हो मगर बात तो बटवारे की ही है ना /
                                      मैं जब भी बटवारे के बारे में सोचता हूँ तो एक हीं सवाल बार - बार मेरे जहन में आता है कि बचपन से अभी तक हमने भाई को भाई से , एक घर से दूसरे घर को, एक राज्य को राज्य से , एक देश को देश से अलग किया गया ,  ,  , ऐसा क्यूँ ? 
हमने भाई से भाई को अलग होकर मिलते देखा मगर , मगर  एक राज्य को राज्य से और   एक देश को दूसरे देश से अलग होकर फिर से उनको एक हो जाते क्यूँ नहीं देखा ?
जब एक भाई मिल सकते है तो एक राज्य और एक देश फिर से क्यूँ नहीं मिलते हैं ? इसके पीछे  कारण क्या है ? जिस तरह लोग बटवारे कि मांग करते हैं क्या वो फिर से मिलने कि मांग नहीं कर सकते ?
कर सकते हैं , मगर लोग करना नही चाहते /
ये तो हमारी खुशनसीबी है कि हमने पाकिस्तान को भारत  से अलग होते नहीं देखा / कैसा भयानक  हुआ होगा वो मंजर जब आज़ादी कि लड़ाई में कंधे से कन्धा मिलकर लड़ने वाले लोग एक दिन एक दूसरे के लिए विदेशी हो गए और तो और दुश्मन भी हो गए ?
बिहार , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश और कई अन्य राज्यों के साथ - साथ र भारत भारत कई टुकड़ों  में बट  गया , मगर फिर भी किताबों में और कई बार नारों में यही गुण गया जाता है  "अखंड भारत " /
पर क्या सच में भारत अखंड है ? क्या अभी भी इसकी अखंडता बरक़रार है ? क्या यही  है  "अखंड भारत " ?


जहाँ तक मैं सोचता हूँ, अभी तो यह एक शुरुआत है आगे न जाने कितने भारत और  कितने तेलंगाना और बनेंगे ?  अगर ऐसा होता रहा तो क्या फिर हम भविष्य में  "अखंड भारत " का हीं नारा लगा सकेंगे  ?
                                               जरा सोचिये...
                                        " और कितने भारत ? "  

" ये क्या मजाक है यार ? "

 "  ये क्या मजाक है यार ?"  आप जरुर ये सोच रहे होंगे की मैंने इस वाक्य का प्रयोग क्यूँ किया ?
इसका सबसे बड़ा कारण है , आंध्र प्रदेश में अगल  तेलंगाना राज्य के गठन की मांग को लेकर चल रहा विवाद  / यहाँ के लोगों की मांग सही है या नहीं ? मैं इस पर कुछ ना कहना ही ठीक  समझता हूँ / मगर अलग तेलंगाना राज्य को बनाने को लेकर चल रहे विवाद के कारण  आंध्र प्रदेश को  और यहाँ की जनता को तो दिक्कतों का सामना करना ही पड़ा साथ ही साथ यहाँ पढाई करने  आये बाहर के  छात्रों और यहाँ के स्थानीय छात्रों को भी काफी नुकसान  उठाना पड़ा /   second semester  में   भी मतलब ठीक एक साल पहले  भी हमलोगों का class cancel किया गया था , मगर उस समय जो भी होता था वो नोटिस के   अनुसार होता था या पहले से ही पता चल जाता था की classes होंगे या नही ?


मगर हद तो इस semester  में  हो गयी जब Osmania university ,  जो की तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग करने की मुहीम में मुख्य भूमिका निभा रहा है, में MCA और अन्य कई विषयों कि परीक्षा शुरू हो गयी और किसी तरह की हिंसा भी नहीं हुई ,मगर हमारा विश्वविद्यालय, English and foreign languages university जहाँ की तेलंगाना को लेकर अभी तक किसी तरह की हिंसा आदि नहीं हुआ था , को बिना किसी कारण बस लगभग 23 दिनों तक बंद रखा गया , यहाँ के विश्वविध्यालय प्रशासन ये भी नहीं सोचा की इस बेवजह बंद का  यहाँ के छात्रों के  भविष्य  पर क्या प्रभाव पड़ेगा  खास कर उनपर जिनका की last semester  है ? 
यहाँ के तेलंगाना समर्थक छात्रों  ने भी इस बंद को बेवजह ठहराया मगर फिर भी न जाने क्यूँ इसे बंद रखा गया ?, एक समय तो ये भी बातें चर्चा में थी की कहीं इस पुरे semester को ही cancel न कर दिया जाये, मगर भगवन का शुक्र है की ऐसा कुछ नहीं हुआ /
खैर ! देर आये दुरुस्त आये !
किसी तरह आज  कुछ department का class हुआ , मगर देखना ये है की आगे क्या होगा ?
कहीं फिर से तो बेवजह हमारे class को बंद  तो नहीं न किया जाएगा ?
अगर ऐसा होता है  तो, शायद  अगली  बार हमे  कहना पड़ेगा.....
                    "बार - बार  ये क्या मजाक है यार ? "