Thursday, January 19, 2012


 नींद तुम्हें अब आती है


तुम जागती हो तनहा रातों में,
मैं भी जगता रहता हूँ 
 नींद तुम्हें अब आती है,
नींद मुझे अब आती है 

है कितने हैरत की  बात ये,
दुनिया तो समझ जाती है
पर तुम ना समझ पाती हो।

सोचती होगी यही तुम,
सोयी  होमैंने कैसे जाना ये,
तो पूछो लो अपनी इन आखों से ,
हो गयी अब शाम सुबह से,
पर अब भी क्यों खोयी दिखती ये।

धुंधली पड़ गयी तेरी आइने सी आखें,
अब शुष्क, बदरंग दिखाई देतीं है ये आखें तेरी,
कभी मुझे जो झील सी नीली दिखती थी।

तुम जागती हो तनहा रातों में,
मैं भी जगता रहता हूँ 
 नींद तुम्हें अब आती है,
नींद मुझे आती है 
                                    : राज सिंह

Thursday, January 12, 2012

                         फिर से एक गलती कर दी मैंने



    

                    फिर से एक गलती कर दी मैंने,
                    मोहब्बत की आँहें भर दी मैंने.

                    समझाना चाहा जब पागल दिल को,
                    दिल हीं मुझे समझाने लगा.
                    ले सहारा अपने दिल का,
                    फिर दिल को बहलाने चला.

                    मैं उलझा ऐसे कुछ दिल-दिमाग में,
                    यूँ लगा जलने लगा मैं इनकी आग में.
                    दिल-दिमाग के इस उलझन में,
                    मैं बेचारा उलझता रहा.

                    कई दिनों तक मेरे अन्दर में,
                    द्वंद युद्ध यूँ हीं चलता रहा.
                    कभी दिल हारा, कभी दिमाग हारा.

                    अब न दिल मेरा, न दिमाग रहा मेरा,
                    इन दोनों के चक्कर में,
                    फिर से गया अब मैं ही मारा.

                    फिर से एक गलती कर दी मैंने,
                    मोहब्बत की आँहें भर दी मैंने.

                                                          राज सिंह 


    

Friday, January 6, 2012

हम सरहद पर मरते हैं



बांध कफ़न सर पर, हम सरहद पर खड़े होते है,
हम सरहद पर मरते हैं, वो घर से भी निकलने से डरते हैं / 

चलते हैं हम कभी बर्फीली वादियों में,कभी कंटीले पथरीली राहों पर 
शर्म नहीं आती उनको, वो चलते हैं महँगी कारों में /    

याद जब आती है घर की, दोस्त समझ जाते है 
रोकना चाहें लाख, पर आसूं तो निकल हीं आते हैं / 

उन्हें आहट भी नहीं इसकी, हम कितने बेचैन हो जाते है ,
कभी संसद को घर बना देते हैं, कभी मंदिर को संसद में ले आते हैं /

हम सोते नहीं यहाँ ताकि वो चैन से सो पाएं
वो घर में एसी का मजा तो लेते हीं हैं, संसद में भी सो जाते हैं 
अपनी राजनितिक पुलाव पकाने के लिए हमें  हीं दोषी ठहरा जाते हैं /   

बांध कफ़न सर पर हम सरहद पर खड़े होते है,
हम सरहद पर मरते हैं, वो घर से भी निकलने से डरते हैं /


                                                                            राज सिंह